Thursday, December 6, 2012

कुण्डलिनी साधना की महत्ता पात्रता एवं कठिनाइयाँ-I


जीवन के सवौच्च लक्ष्य आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिए अथवा ऋद्धियों-सिद्धियों की पूँजी अर्जित करने के लिए शास्त्र कुण्डलिनी जागरण की ओर संकेत करते हैं। भारत की इस अनमोल विद्या पर विदेशियों ने भी शोध कार्य किए है। भारतवर्ष में अंग्रेजों के शासन के दौरान ब्रिटेन के एक जज ‘‘ सर जान वुडरफ ‘‘ एक मुकदमे की सुनवाई में एक भारतीय योगी के सम्पर्क में आए। जिसने अपने योगबल से सही अपराधी का पता व सबूत बताए। कारण था कि योगी जी के शिष्य को व्यर्थ में अपराधी बताया जा रहा था। अपने शिष्य को छुड़वाने के लिए योगी जी को जज साहब के सम्मुख उपस्थित होना पड़ा। सर जान वुडरफ अब भारतीय महाविद्याओं के प्रति अपना शेष जीवन समर्पित करने का मन बना चुके थे और उन्होनें सरपेंट पावर (Serpent Power) जैसे ग्रंथों की रचना की जिसमें कुण्डलिनी साधना पर विस्तार से लिखा गया है।
जहाँ तक इस साधना की महता का प्रश्न है अवतारी सताओ ने भी युग परिवर्तन के लिए इसको आधार बनाया। ऋषि विश्वामित्र ने राम और लक्ष्मण दो तपस्वियों (राजपुत्रों) को आश्रम में ले जाकर बला व अतिबला सिखायी जो कि कुण्डलिनी साधना का ही दूसरा नाम हैं यम ने नचिकेता को पंचाग्नि विद्या रूपी कुण्डलिनी साधना ही कराई थी जिससे उनको आत्मबोध हो सका। युद्ध के मैदान में श्री कृषण अर्जुन की कुण्डलिनी जाग्रत कर Super conscious state में ले जाते है और ज्ञान कराते है अपने कर्तव्य का, साथ-साथ सभी प्रकार के योगों का यह संवाद केवल वो विभुतियाँ सुन सकती थी जो कुण्डलिनी विद्या के द्वारा आज्ञा चक्र का भेदन कर चुके थे जैसे महऋषि  वेदव्यास, संजय आदि। बाद में यह संवाद श्री मद् भागवदगीता के नाम से विश्वविख्यात हुआ। नरेंद्र जब रामकृषण से बहुत सारे प्रश्नो का हल पूछते है तो वो उसको कहते है आम ही गिनता रहेगा या उसका स्वाद भी लेना चाहेगा एक दिन अवसर देखकर अपने पैर का अंगुठा उसकी छाती से स्पर्श कराकर उसकी कुण्डलिनी जगा देते है। इस शक्तिपात से नरेंद्र घबरा जाते है क्योंकि अभी वो उस योग्य मनोभूमि नहीं बना पाए थे। श्री रामकृषण उनको कहते है तु अभी कच्चा है तपाना पडेगा व विश्व कल्याण के लिए अपनी जीवन उत्सर्ग करने के लिए प्रेरित करते हैं।
श्री अरविंद जब इस राष्ट्र को स्वतन्त्र कराने के लिए अपना जीवन झोक देते है तो उनको जेल में देवसताएँ कुण्डलिनी साधना कराती है व साधना की पूर्णता हेतु अज्ञात स्थान (पांडिचेरी) जाने की सलाह देती है। श्री अरविंद के विषय में विख्यात है कि वो चुन-चुन कर सुपात्रो को ही कुण्डलिनी साधना (अतिमान की साधना) के लिए प्रेरित करते थे। अन्यों को कहते थे आप अपना काम करिए हम अपना काम कर रहे है। एक बार नेताजी सुभाष चंद्र बोस पांडिचेरी श्री अरविंद से मिलने आए। श्री अरविंद ने उनको समझाया की देश तो आजाद हो जाएगा पर उसके बाद उसको सम्भालने वाले तपस्वी लोग न के बराबर बचेगें। नेताजी को उन्होंने कहा आप अपनी टीम सहित मेरे आश्रम में आकर साधना करिए व आजादी के बाद की बागडोर सम्भालिए। अपनी टीम को आजादी के बाद के लिए सुरक्षित रखिए। परंतु नेताजी के मन में एक तुफान अंग्रेजो के विरूद्ध सशस्त्र क्रांति का उठा हुआ था, वो महायोगी का ईशारा समझ न सके। वो श्री अरविंद को यह कहकर कि क्या कोठरी में बैठने से भी देश आजाद हुआ करता है? परंतु बाद में जब उनको अपनी गलती का आभास हुआ तो वो पश्चाताप की अग्नि में क्षुब्ध होकर एक सन्यासी हो गए और आजीवन एक साधक बनकर आत्मज्ञान की साधना में निमग्न हो गए। श्री अरविंद अपनी साधना द्वारा ब्रह्ममण्ड के विज्ञानमय कोष का अनावरण कर रहे थे जिससे विश्व कुण्डलिनी जागरण की प्रक्रिया का आरम्भ किया जा सकें और उन्हें इसके लिए उच्च कोटि के सुपात्रो, सहयोगियों की आवश्यकता थी। अरविंद आश्रम में साधना करने वालो को साधना सम्बधी अनुभव तो खूब हुए परंतु कुछ साधक कमजोर मन:स्थिति के कारण कष्ट प्रद स्थिति में जीवन गुजारते रहें।
श्री राम आचार्य जी ने इस समस्या के समाधान के लिए ब्रह्ममाण्ड के आनंदमय कोष का अनावरण किया जिससे कुण्डलिनी साधना की प्रक्रिया से गुजर रहा व्यक्ति आनदन्ति रह सके व अपने सम्पर्क में आने वालो को भी खुशी दे सकें। आचार्य श्री राम जी से जब भी कोई व्यक्ति स्वंय की कुण्डलिनी जगाने की बात करता वो स्पष्ट बताते विश्व कुण्डलिनी जागरण की प्रक्रिया सन् 2000 के उपरान्त प्रारम्भ होने जा रही है पात्रता का विकास करो ताकि सफलता शीघ्र मिलेगी। कुण्डलिनी साधना तो बहुत व्यकित करने का प्रयास करते है वह बहुत से सिद्ध पुरूष भी इस प्रक्रिया को कराने का दावा करते है परंतु सफल वही साधक होते है जिनकी पात्रता उच्च कोटि की होती है। अन्यथा गीली लकड़ी को जलाने का कितना प्रयास किया जाए वातावरण धुएँ से भर उठता है।
कुण्डलिनी महाशक्ति सर्पिणी की तरह मानी जाती है और भयंकर प्रहार व्यक्ति के प्रारब्धो व कु:संस्कारो पर करती है। जिस प्रकार फोड़े में मवाद पडने पर डॉक्टर चीरफाड़ करते है वैसे ही प्रारब्धो की चीरफाड़ आरम्भ हो जाती है। समुद्र मंथन में पहले हलाहल निकला था जिसको महादेव ने धारण किया इसी प्रकार प्रारब्धो का निब्टारा एक कष्ट दायी प्रक्रिया होती है।

(यह लेख पुस्तक 'सनातन धर्म का प्रसाद' से लिया गया है जो कि इस ब्लॉग के लेखक राजेश अग्रवाल जी द्वारा प्रकाशित की गई है। पुस्तक डाउनलोड की जा सकती है बिना किसी मुल्य के:-
http://vishwamitra-spiritualrevolution.blogspot.in/2013/02/blog-post.html
 छपी पुस्तक मांगने की कीमत मात्र सॊ रूपए है, डाक द्वारा भेजी जाएगी)
to be continued.....

No comments:

Post a Comment