Sunday, December 16, 2012

प्रार्थना



हे भगवन!
आपकी महिमा शब्दों में गाई नहीं जा सकती। आपके बिना इस संसार में कितना घोर अंधकार है, कितना दुःख है, कितनी घोर जहालत और अज्ञान है, कितना वहशीपन  और पागलपन है, कितना नाश और महानाश है। कैसी जटिल समस्या बनी हुई है, सारी मानवता का जीवन! आपकी और केवल आपकी शिक्षाओं में इन सबका इलाज़ है, अंधकार का नाश और ज्योति का प्रकाश है। आपका लोक पूर्ण ज्योतिर्मान लोक है, आपके लोक में सकल नीच दुखों का नाश है और सकल उचित सुखों का राज है, आपकी दुनिया में मलिनता का नाश और पवित्रता का वास है, आपके परम पावन रूप में मानवता के वर्तमान पागलपन को नष्ट करने का सामान है, वहशीपन से मोक्ष देने का और एक परम सुन्दर सृष्टि को विकसित करने का सामान है।
भगवन! यह गई गुजरी और खोई हुई, बौखलाई हुई और बुरी तरह भटकती हुई दुनिया और किसकी तरफ देख सकती है, कौन आपके बिना उसका आश्रय स्थान और उसकी एकमात्र आशा और पूर्ण व सच्ची आशा बन सकता है? निस्संदेह, आप पिशाचत्व में गर्क मानवता के लिए जीवन की आशा के जहाज हैं और गिरी हुई इंसानियत को उभारने के लिए एकमात्र और सच्चा खमीर हैं। कदाचित यह मानवता आपको पहचान सकती।
मानव आज िकतना चारों ओर भटक रहा है, चक्कर काट रहा है - िठकाने के िलए, आश्रय के िलए, इलाज के िलए, रोषनी के िलए। यह उसका महादुभार्ग्य है िक वह आपको व आपकी कृपा को अनुभव नहीं कर पाता व माया के चक्कर में उलझ ठोकरें खा-खाकर लहुलुहान होता रहता है। कदािचत मानव आपके धमर्दाता रूप् को, कल्याणकतार् रूप् को, पूणर् उद्धारकतार् व सुखदाता रूप को पहचान सके।
     हे परम िहत सम्पादक, हे अन्धकार से ज्योित की ओर ले जाने वाले, हे, असत्य से सत्य की ओर ले जाने वाले, हे मृत्यु से अमृत की ओर ले जाने वाले,
के सूयर्, हे आध्याित्मक जगत के िसरमौर हे, पूणर् पुरूश धर्मावतार , हे एकमात्र सत्य और उपास्य हम आपकी ारण में हैं हमारा उद्धार किरये।
हे दाता! ऐसा बल दो , मै अपना व दूसरों का सदा भला चाहूँ, भला ही सोचूँ व भला ही करूँ। मेरे भाव, मेरी सोच व मेरे कर्म सब शुभ में रंग जाएं। मुझे क्या अपना शुभ चाहते हुए अथवा किसी दूसरे का शुभ चाहते हूए बहुत प्रयास न करना पड़े, वह स्वत: होने लगे। यानि शुभ चाहना व शुभ करना मेरे स्वभाव का हिस्सा बन जाए। ऐसी समर्थ दो!
हे रक्षक! आप महाबली है, मेरी रक्षा कीजए। प्राय: संसार में लोग अपने इष्ट से, अपने बाहरी दुश्मनों से रक्षा हेतु प्राथर्नाशील होते है, किन्तु आपकी कृपा से मैं ऐसा नहीं चाहता। क्योंकि  बाहरी दुश्मनों से कुछ न कुछ रक्षा तो मैं अपने व अपनोंके बाहुबल, धनबल, दिमागी शक्तियों  और पुलिस , प्रशासन व सरकार के दम पर कर ही लूँगा। परन्तु, मेरे स्वभाव में जो मेरी दुश्मन शक्तियाँ छुपी है,उनसे बचाने में मेरा शारीरीक बल, मानसिक  शक्तियाँ , मेरे साथी, पुलिस  प्रशासन व सरकार सब बेबस है। इन भीतरी दुश्मनों को तो केवल आपकी ज्योति व शक्ति ही दिखा सकती है व उनसे बचा सकती है, इसलिय इस ज्योति व शक्ति की मुझे अतिशय जरूरत है।
हे महादानी! मुझ पर तरस खाओ, मेरी मजबूरी व मेरी अयोग्यता को देखकर मुझ पर रहम करो, मुझे अपनी लासानी ज्योति व शक्ति का दान दो। मेरे भीतर जो भी कारण इस ज्योति व शक्ति  को प्राप्त करने में रूकावट हों, उन्हें नष्ट करो, ताकि मैं अपने भीतरी शक्तियों व दुश्मनों से सुरक्षित रह सकूँ। हे भगवान् कृपा करके मेरे जीवन में सच्चे सुख, शांति, चैन, नींद, सेहत का अपहरण करने वाले तथा मेरे आत्मबल को घटाने वाले इन शत्रुओं को दिखाओ व इनसे बचाओ! मेरी प्राथर्ना कबूल करो!
हे देव! ऐसी प्राथर्ना भी तो आपकी ही कृपा से सम्भव है। आपके इस अमूल्य दाने के लिऐ  आपके श्रीचरणों की धूल में अपना नापाक सिर रखना, मैं अपना महासौभाग्य बोध करता हूँ, आपके साथ अपने संबंध बना पाना, अपना एहोभाग्य बोध करता हूँ और स्वंय को राजा महाराजाओं से असख्यों गुणा अमीर बोध करता हूँ। काश, मैं सदा-सदा आपके देव दरबार का भि खारी बना रह सकूँ और आपकी ज्योति व शक्ति को पाने व योग्य आत्माओं तक उसे पहुँचाने का अधिकारी बना रह सकूँ। हे शुभकतार्! आपका भी शुभ हो! मेरा शुभ हो! सबका शुभ हो!
                                   सत्य देव संवाद-दिसम्बर 2012

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